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Wednesday 7 November 2012

بِسمِ اللہِ الرحمٰنِ الرحیم


खाने -पीने में जहर  से  हिफाज़त की दुआ
"कन्जुल-इबाद" में लिखा है कि जब कोई शख्स कुछ खावे या पीवे तो यह दुआ पढ़ ले. इस दुआ की बरकत से खाने के मुज़िर (बुरे )असरात से महफूज़ रहे गा.

दुआ का मफहूम(अनुवाद):"शुरू करता हूँ में अल्लाह के उस नाम से जो सब नामो से अछा है.शुरू करता हूँ में अल्लाह के नाम से जो ज़मीन और आसमान का रब्ब है.शुरू करता हूँ उस अल्लाह के नाम से जिस के नाम के साथ ज़मीन ओर आसमान की कोई चीज़ नुकसान नही पहुंचा सकती, और वोह सुनने वाला और जानने वाला है.
इस दुआ के बारे में एक दिलचस्प हिकायत:
"अबू-मुस्लिम खोलानी की एक लोंडी (कनीज़) थी. उस ने अपने मालिक को कई बार ज़हर दिया लेकिन उस पर कोई असर न हुवा. काफी मुद्दत गुज़रने के बाद लोंडी ने मालिक से कहा कि मैं ने कई बार तुम्हें ज़हर दिया लेकिन तुम पर कोई असर न हुवा, इस की वजह क्या है. मालिक ने पूछा कि तू ने मुझे ज़हर कियूं दिया था? उस ने कहा कि इस लिए कि तुम बूढे हो गए हो और मुझे हड्डियां पसंद नही हैं. मालिक ने कहा कि मैं हमेशा यह पाक कलिमात अपने हर खाने-पीने की चीज़ पर पढ़ कर खाता-पीता हूँ. इसी की बरकत से महफूज़ रहा. और साथ ही उस लोंडी को आज़ाद कर दिया"

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